"इसके लिए आपको एंटीबायटिक (एंटीबैक्टीरियल) और एंटीवायरल दवा के अन्तर को समझना होगा। और उससे भी पहले आपको जानना होगा कि जीवाणु यानी बैक्टीरिया और विषाणु यानी वायरस कैसे संरचनात्मक और क्रियात्मक रूप से भिन्न हैं।"
"जीवाणु एककोशिकीय जीव हैं। उनके भीतर स्वतन्त्र जीवन जीने लायक सारी मशीनरी मौजूद है। एक जीवाणु-कोशिका साँस लेती है, भोजन ग्रहण करती है, अपशिष्ट छोड़ती है और प्रजनन भी करती है। इन-सब के लिए उसके पास तरह-तरह के रसायन हैं, जिनकी इन क्रियाओं में भूमिका होती है। किन्तु विषाणु की संरचना जीवाणु की तुलना में बेहद सरल होती है। वह कोशिका नहीं है, कोशिका से भी बहुत-बहुत छोटा है। चूँकि कोशिका को हम पारम्परिक तौर पर जीवन की इकाई मानते हैं, इसलिए विषाणु जीवन की परिभाषा में सटीक नहीं बैठता। वह जीवन की सभी क्रियात्मक शर्तें पूरी नहीं करता : भोजन-श्वसन-उत्सर्जन जैसी अनेक क्रियाएँ वह करता ही नहीं। वह कोशिका के भीतर प्रवेश करता है और उस कोशिका की मशीनरी का प्रयोग अपनी प्रतियाँ बनाने के लिए करता है।"
"यानी शरीर में प्रवेश करने वाले जीवाणु वस्तुतः रोगकारी कोशिकाएँ हैं, जबकि विषाणु कोशिकाओं के आन्तरिक परजीवी ?"
"हाँ। यद्यपि कुछ जीवाणु भी हमारी कोशिकाओं के भीतर रह सकते हैं और वृद्धि भी कर सकते हैं, पर वे कोशिका के भीतर स्वतन्त्र अस्तित्व रखते हैं। टीबी व लिस्टीरिया जैसे जीवाणु हमारी कोशिकाओं के भीतर बढ़ते-पनपते बीमारी पैदा किया करते हैं, पर उनके पास अपनी कोशिकीय मशीनरी होती है। पर विषाणु पूरी तरह से हमारी कोशिकाओं पर निर्भर है। वह सब-कुछ हमसे लेता है और हममें बढ़ता है।"
"तो एंटीवायरल दवा बनाने में मुश्किल कहाँ हो रही है ?"
"एंटीबायटिक जीवाणुओं को कैसे मारती है --- यह समझिए। ये दवाएँ जीवाणु-कोशिकाओं के भीतर कोई संरचनात्मक या क्रियात्मक दोष पैदा कर देती हैं। इससे जीवाणु का एक कोशिकीय शरीर बीमार पड़ता और मर जाता है। किन्तु एंटीवायरल दवाओं के निर्माण के समय एक मुश्किल यह होती है कि यहाँ जिन विषाणुओं को नष्ट करना है, वे तो अपनी ही कोशिकाओं का प्रतियाँ बनाने के लिए प्रयोग कर रहे हैं। ऐसे में एंटीवायरल दवा अगर अपनी ही कोशिकाओं में संरचनात्मक-क्रियात्मक दोष पैदा करे, तो उससे रोगी को साइड-एफेक्ट होंगे और न करे तो विषाणुओं को वह ठीक से नष्ट नहीं कर पाएगी। आप इसे ऐसे समझिए : बाहरी शत्रुओं को उनके घरों में नष्ट करना आसान है, किन्तु अपने घरों में घुस आये और अपनी ही सेवाओं को इस्तेमाल कर रहे शत्रुओं को मारते समय कोलैटरल डैमेज अधिक होने का अन्देशा रहता है। यही कारण है कि एंटीवायरल दवाएँ एंटीबैक्टीरियल दवाओं की तुलना में बनानी मुश्किल हैं और उनकी संख्या भी कम है।"
--- स्कन्द।
साभार स्कन्द शुक्ला की वाल से
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