आज कोरोना की महामारी में सरकारी डॉक्टर, नर्स, मेडिकल कर्मी, पुलिस, सेना, राजस्व, सहित तमाम विभागों के लोग जान जोखिम में डाल कर जूझ रहे हैं इस संघर्ष में वे संक्रमित भी होरहे, मर भी रहे, लेकिन वे डटे हैं, उनके सम्मान में ताली, थाली, भी बजाई गयी, तो उनका मनोबल भी कुछ ऊंचा हुआ कि उनके इस संघर्ष के प्रति देशवासियों के मन मे श्रद्धा है, उन्होंने अपने एक दिन का वेतन भी सरकार को दिया कि इससे मेडिकल तैयारियों में सहयोग मिलेगा सरकार को, अब उनके महंगाई भत्ते सहित तमाम भत्ते रोक दिए जा रहे, जब वे ही संघर्ष कर रहे इस महामारी में तो उन्हें तो कुछ प्रोत्साहित करना चाहिए था, उल्टे उनके वेतन भत्ते की कटौती करके आआख़िर उन्हें क्या सन्देश दिया जा रहा, निश्चित रूप से उनमें एक हताशा की भावना का संचार होगा, वही सरकारी डॉक्टर आज मोर्चे पर जूझ रहे अपने कम संसाधनों के साथ, आआख़िर वे पांच सितारा अस्पतालों के वे डॉक्टर महोदय कहाँ गए जो अस्पताल खोलने के नाम पर फ्री में देश के पाश इलाके की जमीन पा जाते हैं फिर उस अस्पताल की फीस उतनी ऊंची करते हैं कि सामान्य व्यक्ति उसका गेटलांघने की हिम्मत न कर सके, आज कोरोना संकट में वे लोग अस्पतालों पर ताला लगा कर घरों में टिक टोक वीडियो बनाकर खेल रहे है, कोरोना तो छोड़िए वे अपने नियमित मरीजो तक का फोन नही उठा रहे जैसे फोन से भी कोरोना संक्रमण फैल जाएगा, आआख़िर उनकी कोई जिम्मेदारी देश के लिए नही बनती, तमाम उद्योग घराने है जिनकी यतनी बड़ी बड़ी कर्ज माफ की जाती है जितने में किसी एक प्रदेश के पूरे किसान अपनी दोनो फसलों की बुवाई सिंचाई कटाई कर लें, उनकी भी जिम्मेदारी कुछ बनती है? क्या भरोसा लॉक डाउन के बाद वे फिर कटोरा लेकर खड़े हो जायें की हम घाटे में चले गए और हजार, लाख करोड़ की लोन माफी भी हो उनकी कोरोना संकट से उबारने के लिए। आआख़िर उनकी भी कोई जम्मेदारी नही बनती, ?
सरकारी कर्मचारी जितना वेतन पाता है उसी के अनुसार वह अपनी दिनचर्या निश्चित करता है, तमाम कर्ज घर , बच्चों की पढ़ाई, गाड़ी की मासिक किश्तें जमा होती हैं, यदि उसी से उम्मीद है, वही लड़ रहा, तन मन धन से और बाकी सब लोग घरों में दुबक कर केवल बोरियत से दुखी हो रहे, तो इन कोरोना सैनिकों की हौसला अफजाई की जाय, कुछ अतिरिक्त भले न दिया जाय, उन्हें जो मिल रहा उसे तो जारी रखा जाय, और उनके प्रति सद्भावना रखी जाय।