विवेकानंद जी के कितने ही नाम रखे गए। लेकिन प्रसिद्धि इसी नाम "विवेकानंद" को मिली!
स्वामी विवेकानंद का मूल नाम नरेंद्र नाथ दत्त था। आगे उन्होंने कुछ समय अपना नाम स्वामी सच्चिदानंद और स्वामी विदिशानंद रख कर भारत में भ्रमण और प्रवचन करते रहे।
इन्हीं दो नामों से वे विश्व धर्म सम्मेलन के पहले तक भारत में जाने जाते रहे।
जब उनकी शिकागो की यात्रा आरंभ हुई तब खेतड़ी राज्य के नरेश अजित सिंह जी ने उनको यह नया नाम "विवेकानंद" दिया। जिसे स्वामी जी ने स्नेह से स्वीकार कर लिया!
विवेकानंद जी के सिर पर जो राजस्थानी पगड़ी और जो उनका गेरुआ वस्त्र प्रसिद्ध हुआ वह भी खेतड़ी नरेश के मंत्री मुंशी जगमोहन लाल जी ने हठ करके बंबई में उनके लिए बनवाई थी।
एक और बात। विश्व धर्म सम्मेलन के पहले स्वामी जी ने पच्चीस पचास की भीड़ को भी संबोधित नहीं किया था। जब अमेरिका में अपने आगे सात आठ हजार की भीड़ देखी तो उनको बहुत उलझन हुई। और वे भाषण न देने के मूड में आ गए थे।
खेतड़ी नरेश हर महीने विवेकानंद जी की मां को एक सौ रुपए और एक सौ रुपए विवेकानंद जी को भेजते थे। खेतड़ी महाराज ने ही स्वामी जी को घर बनवाने के लिए उस समय दस हजार रूपए भी दान दिए!
खेतड़ी नरेश अजित सिंह जी ने ही विवेकानंद जी के शिकागो प्रवास के आर्थिक प्रबंध के लिए तीन हजार रूपए भी दिए!
विवेकानंद जी ने अपने एक पत्र में महाराज जी को लिखा है कि एक आप ही हैं संसार में जिससे मांगने में लज्जा नहीं आती।
यह बात हमको और देश को स्वीकार करना चाहिए कि विवेकानंद जी को सिर्फ नाम ही नहीं चिंतन की निश्चिंतता भी खेतड़ी नरेश अजित सिंह जी ने दी। एक राजा और एक संत का ऐसा मन मिलता देख कई बार मन द्रवित हो उठता है!
ऐसे अनछुए पहलुओं पर बात होनी चाहिए। वे संन्यासी हों या सम्राट। उनका बनना और उनको बनाने वाले देश को दिखने चाहिएं। पता नहीं आप लोग आज के पहले खेतड़ी नरेश अजीत सिंह की का नाम भी सुना था या नहीं?
साभार-बोधिसत्व, मुंबई