गोरखपुर के मूसाबार गाँव निवासी 65 वर्षीय मुकलू कैम्पियरगंज में सड़क किनारे बैठ कर जूते बनाते हैं और अपनी पत्नी प्रभावती के साथ कुछ दूर पर झोपड़ी डाल के रहते हैं। लॉकडाउन के दौरान अब घर पर ही रहते हैं और लगभग एक महीने से एक रुपये की आमदनी नहीं हुई है।
गोरखपुर के खजूरगांवा में प्रशासन के साथ कुछ स्थानीय लोग राहत सामग्री बाँट रहे थे। ये सुन कर मुकलू भी साइकिल से पहुँच गए। लोगों ने बूढ़ा व्यक्ति देख कर थोड़े ज्यादा बिस्किट्स आगे किये तो मुकलू हाथ जोड़ कर बोले - 'बाबू, आप लोग बहुतों के आँसू पोछ रहे हैं कुछ हमारी सामग्री भी ले ली जाय।' मुकलू बोले साइकिल को हाथ लग जाये तो गठरी उतर जाए। मुकलू की साइकिल से उतारी गई गठरी में 22 किलो चावल, 5 किलो आटा, 2 किलो आलू और कुछ बैंगन रखे थे। मुकलू गठरी दान करके अपनी झोपड़ी के लिए फिर से निकल गए।
प्रधानमंत्री जी, ये नाम नोट होना चाहिए। इस समस्या से निकलने के बाद जिन हीरो को देश सलामी दे, उसमें 'मुकलू जी' भी होने चाहिए।
"मुकलू" जी ने साबित कर दिया कि देने के लिए भाव ऒर हृदय में करुणा होनी चाहिए, हैसियत जरुरी नहीं।