तालाबंदी : अनिल यादव


 
3 मई तक 40 दिन की तालाबंदी पूरी हो जायेगी।  
और अर्थव्यवस्था आधी बर्बाद हो चूकी है।


क्या तालाबंदी सफल रही..? 
नहीं बिल्कुल नहीं। 
नोटबंदी की तरह सोचे समझे बिना, अचानक की गई तालाबंदी से संक्रमण कम नहीं हुआ है। 
केसों का बढ़ता आंकड़ा 20,000 के नजदीक पहुंच गया है। 
600 से ज्यादा नागरिकों की मौत हो चुकी है।
तम
हो सकता है कि आपके लिए ये आंकड़ा 3% या 4% हो लेकिन जिनके परिवार के सदस्य की मौत हुई है उनके लिए कोविड 19 पेंडेमिक 100% घातक साबित हुआ है।


40 दिन के लोकडाउन में सरकार कुछ नहीं कर पायी है। 
ना तो सबकी जांच कर पायी है। ना इलाज़ कर पायी है। 
ना लोगों को मास्क, सेनेटाइजर, वेंटिलेटर, आइसीयु, दवाईयां या वेकसीन उपलब्ध करा पायी है। 
ना अस्पताल की व्यवस्था कर पायी है। 
ना डॉक्टर उपलब्ध करा पायी है।


आज भी कोविड 19 की जांच, आइसोलेशन, क्वोरंटाइन इलाज का सामना जिसे भी करना पड़ता है उनका जीना हराम हो जाता है।


उपर से भुख और पुलिस की पिटाई के कारण अनेक लोग मारे गए हैं। लाखों लोग भूखमरी का शिकार हुए है। करोड़ों लोग बेरोजगार हो गए हैं।


सरकार अपने पुलिस अफसर, डॉक्टर, नर्स को भी मरने से बचा नहीं पायी है। मेरी नज़र में यह तालाबंदी पूरी तरह फेल रहा है।


बड़े लोग पार्टियां करते हैं। पावरफुल लोग धार्मिक गतिविधियों में जाते रहे। सामाजिक समारोह करते रहे हैं। फिर भी 95% जनता को घर में कैद रहना पड़ा है।


क्यों फेल रही सरकार? क्योंकि सरकार का ध्यान कोविड 19 के उपर नहीं था। सरकार का ध्यान सांप्रदायिक ध्रुवीकरण करने में था। विरोधियों को बदनाम करने में था। जमात पर था। मुस्लिम पर था। सरकार व्यस्त थी साजिशें रचने में।


अब तालाबंदी नहीं, 
जांच, इलाज़, होस्पिटल, डॉक्टर और नर्स की सुविधा दिजिये..सबको। 
आपको तैयारी करने के लिए 40 से ज्यादा दिन मिल चूके है।