जिन्दगी से दूर ये तेरा कहर छोड़ कर
चला जा रहा हूं तेरा शहर छोड कर---।
आया था मैं आश लेकर,घर से विश्वास लेकर
मुम्बई शहर में रोजी -रोटी की तलाश लेकर
अपने हुनर को जब शहर में दिखाउगा
अपने परिश्रम से सारे शहर को सजाउंगा
सारे रिस्तों का यें सफर छोड़ कर
चला जा रहा हूं--------।
सपनों में याद जब गॉव की आती है
तेरे कहर से रूह कांप जाती है
इतना भयानक करोना बिमारी है
सुरषा के जैसे पांव पसारी है
दिल की आशियानां ये वसर छोड़ कर
चला जा रहा हूं--------।
जिन्दगी के सफर में आज मैं अकेला हूं
गर्मी की धूप में पैदल चल कर झेला हूं
सिर पर भारी बोझ लेकर, मन में ग़म का क्रोध लेकर
चला जा रहा हूं आंशुओ का घूंट पी कर
आपदा से दूर ये नगर छोड़ कर
चला जा रहा हूं--------।
मुम्बई शहर की जब याद मुझें आयेगी
सारी परिस्थीतियां इन्टर नेट बतायेगी
शाहस विश्वास लेकर फिर मैं आऊगां
तेरे उजडे़ शहर को फिर से सजाउंगा
लाऊगां खुशियां दिल जोड़ कर
चला जा रहा हूं--------।
दिनेश प्रेमी, देवरिया