सलेमपुर, देवरिया। कोरोना कहर में सलेमपुर तहसील क्षेत्र के ठोकाबंशी गांव निवासी अरविन्द पाण्डेय मुम्बई से अपने गांव तक बाइक चलकर आज सुबह पहुंच गया।अरविन्द अपने घर जाने से पहले सलेमपुर सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र पहुंचकर सबसे पहले अपना स्वास्थ्य परीक्षण कराया और वहां से अपना स्वास्थ्य प्रमाण पत्र प्राप्त कर घर पहुंचा जहां वह अपने परिवार से अलग रहते हुए स्वयं को 14 दिनों के लिए कोरोनटाईन कर रहा है।
कोरोना वायरस का संक्रमण थमने को नाम नही लेता।सम्पूर्ण देश मे पिछले दो महीने से लॉक डाउन है,जिसके कारण लोगों का रोजगार भी छीन गया है।लोग दूसरे राज्यों से अपने घरों के लिए निकल चुके हैं।जिसे जो साधन मिल रहा बस उसी से अपने घर का रुख कर दिया।हजारों की संख्या में लोग देश के दूर-दराज के क्षेत्र से पैदल चल दिये हैं।कुछ राज्य सरकारें इनको घर भेजने में संजीदगी तो कुछ घोर उदासीनता दिखा रहे हैं।
अरविन्द पाण्डेय से सम्मानित समाचार पत्र गुरुकुल वाणी के संवाददाता संकृत्यायन रवीश पाण्डेय ने मोबाइल पर उनका हाल जानना चाहा तो उन्होंने अपनी आप बीती बताते हुए कहा कि उठिए जागिए और चलिए तब तक ना रुकें जब तक कि आपको अपना लक्ष्य न मिल जाय-स्वामी विवेकानंद की इसी युक्त को मैंने शिरोधार्य करके मुंबई से बाइक से निकल पड़ा अपने गृह जनपद देवरिया सलेमपुर के लिए। आगे उन्होंने कहा कि मैं महाराष्ट्र के मुंबई शहर में चयन नामक स्थान पर रहता हूं जो धारावी से 2 किलोमीटर की दूरी पर है।प्रशासनिक लापरवाही के चलते आपसी तालमेल में कमी होने के वजह से यह कोरोना संक्रमण मुंबई शहर में काफी तेजी से फैल रहा है। यह वायरस हजारों लोगों को अपने चपेट में ले चुका है आपने कुछ दिन पहले यह खबर पढ़ी होगी कि हॉस्पिटल में लाश रखने की जगह नहीं है।यह खबर सच है भारी संख्या में लोग इसके कहर से मर चुके है।
आगे उन्होंने बताया कि मेरे पिताजी पिवकोल रेलवे स्टेशन के अभिकर्ता हैं मैं अपने परिजनों के पास उनसे निश्चित दूरी बनाकर 14 दिनों के लिए क्वॉरेंटाइन में सरकारी आदेश को प्रमाण स्वरूप मानकर पालन कर रहा हूं।
अपने बारे में बताते हुए कहा कि मैं मुंबई में जहां रहता हूं वहां से सिर्फ 10 मीटर की दूरी पर कोरोना वायरस की पहचान की पुष्टि सरकार के द्वारा की गई। उसके बाद एक हफ्ते तक किसी भी प्रकार से महाराष्ट्र सरकार ने कोई ठोस कदम नही उठाया।अगल-बगल के लोगों को ना तो कोई स्कैनिंग कराई गई और ना तो कोई प्राथमिक सुविधा दिलाया गया,ना ही उन लोगों को किसी कोरोनटाईन स्थल पर भेजा गया। समय बीतने के साथ साथ और चार-पांच व्यक्ति कोरोना वायरस से पीड़ित हो गए।जब यह खबर हमें मिली तो मुझे लगा की अब यह स्थान हमारे लिए सुरक्षित नहीं है और इस स्थान को छोड़ देना ही हमारी समझदारी है।
मैं पिछले सोमवार दिनांक11 मई को रात्रि 11:30 बजे पर मुम्बई से अपनी बाइक से गांव के लिए चल दिया।( अपने गंतव्य तक पहुंचने के बाद मैंने उस बाइक को चेतक नाम दिया है)उसने बताया कि मुझे मुंबई से अपने उत्तर प्रदेश की देवरिया जनपद पहुंचने में 5 दिन का समय लगा। और रात 8:30 बजे मैं बिल्थरा रोड के रास्ते भागलपुर पुल क्रॉस करते हुए अपने जनपद में प्रवेश कर गया। और सुबह अपने बाइक के साथ सलेमपुर प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र पहुंच कर अपना स्वास्थ्य परीक्षण करवाया उसके बाद आदेश की प्रति प्राप्त कर मैं अपने घर पर स्वयं क्वॉरेंटाइन हो रहा हूं ।और आप लोगों को दिलासा दिलाना चाहता हूं कि कोरोना से डरने की जरूरत नहीं है। हमें विशेष रूप से सतर्क रहने की जरूरत है।मैं उस मौत के मुंह को सिर्फ 10 मीटर की दूरी से देख कर आया हूं।जब प्रशासन ने बताया कि ये लोग करोना पीड़ित हैं ,तो हम सचेत हो चुके थे ,और स्वयं को बचाने के लिए व मेरे परिवार पर विशेष क्षति न पहुंचे, इसके लिए ,स्वयं को सुरक्षित करने के लिए मैं अपने गृह जनपद देवरिया के लिए रवाना हो चुका था।
रास्ते में हमें बहुत कुछ ऐसा अनुभव मिला जो मुझे जीवन में आगे बढ़ने में सहायता प्रदान करेगा।हमें रास्ते में ऐसे ऐसे लोग भी मिले जो 20 दिन से पदयात्रा पर निकल पड़े थे।अपने गंतव्य स्थल को पहुंचने के लिए।जिनके पास में न तो खाने की व्यवस्था थी और न ही पीने की व्यवस्था थी।बस ईश्वर के सहारे दृढ़ संकल्प और मजबूत इच्छाशक्ति से वे हर बाधा को पार करते हुए अपने लक्ष्य तक पहुंचने को उतावले थे।हजारों लोग अपने मंजिल तक पहुंच चुके हैं और कुछ पहुंच रहे हैं तथा कुछ पहुंचने वाले हैं।इसके लिए मैं आप सभी से यह विशेष रूप से प्रार्थना करता हूं कि अगर दृढ़ इच्छाशक्ति आपके अंदर पैदा हो गई तो- आपको कोई भी अभाव,कोई भी प्रभाव,कोई भी स्वभाव,आपको रोक नहीं सकता है।आप अपने लक्ष्य तक पहुंच ही जायेंगे।
आगे बताया कि मैं महीनों पहले से अपने गांव के लेखपाल के माध्यम से सरकार को यह लिखित सूचना दी गई कि मैं मुंबई से घर आना चाहता हूं।महीना बीत जाने के बावजूद भी यहां के प्रशासन ने कोई व्यवस्था नहीं कि, मैंने अपने जिला अधिकारी को भी अनेक बार ट्वीट किया कि मुझे बाइक से ही आने का परमिशन दे दिया जाए। स्वयं को आने की हमें अनुमति दिया जाए। लेकिन हमें ऐसी कोई मदद नही मिली जो विशेष रूप से मेरे लिए लाभकारी हो।मैंने महाराष्ट्र सरकार के पुलिस स्टेशन में भी जाकर के प्रमाण पत्र जमा कराया कि हम लोग अपने गांव जाना चाहते हैं और जो आपके पास सरकारी नियम है, उसके तहत मुझे रेलवे के टिकट की वैकल्पिक व्यवस्था की जाए। 15 दिन गुजर जाने के बाद कोई ध्यान नहीं दिया गया।और कोरोना पीड़ित हमारे बगल से जब निकलने लगे तो मुझे मजबूरी में उस जगह को तुरंत छोड़ना पड़ा।
रास्ते में जब मध्यप्रदेश की सीमा में हमने प्रवेश किया तो मध्य प्रदेश के लोगों ने ऐसे लोग जो अपने घर के लिए सड़क पर निकल पड़े हैं उनका काफी सहयोग कर रहे हैं।मैं उनको दिल से धन्यवाद देना चाहूंगा,उन सभी मध्यप्रदेश निवासियों को मैं दिल से दुआएं देना चाहूंगा जिन्होंने हमारी पग-पग पर मदद की जिनके पास जिस प्रकार की व्यवस्थाएं थी वह अपने घरों से दूर हाईवे पर खड़े होकर के जनमानस की सेवा के लिए अपना तन मन सर्वस्व न्यौछावर करने के लिए खड़े थे।एक महिला मुझे एक्टिवा पर खड़ी दिखी।हाथ दे करके मुझे रोकी मेरे पास आई ,बोली कि चाय पी कर आगे निकल जाइए।बातचीत में उन्होंने बताया कि वह किसी बैंक में सरकारी कर्मचारी हैं। और यहां 2 घंटे के हिसाब से लोग अपने में बांट लेते हैं,कार्य को।इस समय वह अपने घर से चाय बना कर लायी थी,और 2 घंटे तक आने जाने वाले ऐसे लोगों को चाय पिलाने के काम करेंगी।ऐसी महिला को मैं नमन करता हूं। मुझे अपनी मंजिल अपना लक्ष्य दिखाई दे रहा था,इसलिए मैं उनका नाम भी नहीं पूछ पाया।
मध्य प्रदेश की सीमा समाप्त होने पर जब मैं महोबा की सीमा पर पहुंचा तो उत्तर प्रदेश की पावन भूमि को चरण स्पर्श करके आगे बढ़ा।तो हमने देखा यहां हर चीज बदल चुकी है यहां लोग हम लोगों को हंसी के तौर पर देख रहे हैं।हम लोग के ऊपर मजाक उड़ाया जा रहा है।हमारी गाड़ियों के नंबर देख कर के लोग अपने दुकानों से सामान देने में कातर भाव प्रकट कर रहे हैं।यह देखकर मुझे बहुत ही दुख हुआ।मुझे बहुत ही आत्मग्लानि हुई।क्या यह हमारा प्रदेश है!जहां हम को अपने ही लोगों ने इतना दूर कर दिया।यह बातें मुझे बहुत गलत तरीके से असर कर चुकी है।शायद दशकों तक इस बात को भुला ना सकूँ।इस तरह हम एन केन प्रकारेण दृढ़ इच्छाशक्ति के बली होने के वजह से सुरक्षित अपने लक्ष्य तक पहुंच चुका हूँ।स्वामी विवेकानंद की उपरोक्त युक्ति पर अब मुझे काफी विश्वास हो चुका है। महापुरुष कि ये युक्तियां तो छोटी लग सकती हैं,लेकिन असंभव चीज को संभव बनाने में यह युक्तियां आज भी प्रासंगिक हैं।
संकृत्यायन रवीश पाण्डेय