अंततोगत्वा, जब प्रवासी कामगारों की अंतहीन व्यथा पर, खूब शोर मचा और सोशल मीडिया, अखबारों में, सरकार की काफी भद्द पिटी, तब जाकर, सुप्रीम कोर्ट की चुप्पी भी टूटी। इस मामले में चुप्पी के लिये न्यायपालिका की भी आलोचना हो रही थी। आखिरकार, सुप्रीम कोर्ट ने आज प्रवासी मज़दूरों की व्यथा का स्वतः संज्ञान लिया और 28 मई की तारीख इस बात के लिये तय की है उस दिन, राज्य सरकारें अपने अपने स्टैंडिंग काउंसिल के द्वारा और केंद्र सरकार अपने सॉलिसिटर जनरल के द्वारा अदालत को केंद और राज्य सरकार ने उनकी व्यथा को दूर करने के लिये क्या क्या उपाय किये हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने केंद सरकार और राज्य सरकारों को अपना पक्ष रखने के लिये नोटिस जारी की है। अदालत ने अपने आदेश में कहा है,
जो पीठ सुनवाई कर रही है उसके जज, जस्टिस अशोक भूषण, जस्टिस संजय कृष्ण कौल, जस्टिस एमआर शाह है। यह आदेश आज 26 मई 2020 का है।
यह खबर पढ़ कर दुष्यंत कुमार की यह पंक्तियां याद आ गयी।
कौन कहता है कि आसमां में सुराख हो नहीं सकता,
एक पत्थर तो ज़रा तबीयत से उछालो यारो !!
सरकार हो या संसद या अदालत, यह सब संस्थाए केवल जनहित के लिये हैं, बिना डरे बिना झुके, अपनी बात कहते रहिये।
सुप्रीम कोर्ट को इस स्वतः संज्ञान लेने के लिये बधाई। सुप्रीम कोर्ट से हमें इस बारे में क्या चाहिए, यह अगली पोस्ट में।