# एक बड़े *उद्योगपति* शिक्षा संस्थानों के *शिक्षकों* को संबोधित कर रहे थे- "देखिए! बुरा मत मानिए ! लेकिन जिस तरह से आप काम करते हैं; जिस तरह से आपके संस्थान चलते हैं यदि मैं ऐसा करता तो अब तक मेरा बिजनेस डूब चुका होता ।"
चेहरे पर *सफलता का दर्प* साफ दिखाई दे रहा था !
"समझिए ! आपको बदलना होगा; आपके राजकीय संस्थानों को बदलना होगा; आप लोग आउटडेटेड पैटर्न पर चल रहे हैं; और सबसे बड़ी समस्या आप शिक्षक स्वयं हैं, जो किसी भी परिवर्तन के विरोध में रहते हैं !"
"हमसे सीखिए ! बिजनेस चलाना है तो लगातार सुधार करना होता है किसी तरह की चूक की कोई गुंजाइश नहीं !"
*प्योर अंग्रेजी में चला उनका भाषण समाप्त हुआ... ..*
तो प्रश्न पूछने के लिए एक *शिक्षिका* का हाथ खड़ा था..!
"सर ! आप दुनिया की सबसे अच्छी कॉफी बनाने वाली कंपनी के मालिक हैं ।
एक *जिज्ञासा* थी कि आप कॉफी के कैसे बीज खरीदते हैं..? "
*उद्योगपति* का गर्व भरा ज़वाब था- *"एकदम सुपर प्रीमियम!* कोई *समझौता* नहीं..!"
शिक्षिका ने फिर पूछा:-
"अच्छा मान लीजिए आपके पास जो माल भेजा जाए उसमें कॉफी के बीज *घटिया* क्वालिटी के हों तो..??"
*उद्योगपति:-*
" सवाल ही नहीं ! हम उसे तुरंत वापस भेज देंगे; वेंडर कंपनी को ज़वाब देना पड़ेगा; हम उससे अपना *क़रार रद्द कर सकते हैं !*
कॉफी के बीज के चयन के हमारे *बहुत सख्त मापदंड* है इसी कारण हमारी कॉफी की प्रसिद्धि है ! "आत्मविश्वास से भरे उद्योगपति का लगभग स्वचालित उत्तर था !
*शिक्षिका:-*
"अच्छा है ! अब हमें यूँ समझिए कि *हमारे पास रंग-स्वाद-और गुण में अत्यधिक विभिन्नता के बीज आते हैं लेकिन हम अपने कॉफी के बीज वापस नहीं भेजते ! "*
"हमारे यहां सब तरह के बच्चे आते है; *अमीर-गरीब, होशियार-कमजोर, गाँव के-शहर के, चप्पल वाले-जूते वाले, हिंदी माध्यम के-अंग्रेजी माध्यम के, शांत- बिगड़ैल...सब तरह के !*
हम उनके *अवगुण* देखकर उनको निकाल नहीं देते !
*सबको लेते हैं ;*
*सबको पढ़ाते हैं;*
*सबको बनाते हैं.. !"*
*"..... क्योंकि सर !
*हम व्यापारी नहीं, शिक्षक हैं।
शिक्षक और ब्यापारी : धीरेन्द्र प्रताप सिह