बेगमपुरा : डाॅ. चतुरानन ओझा 


आपने ऐसे समाज की परिकल्पना की जहां कोई छोटा-बड़ा न हो, चारों ओर खुशहाली ही हो। ऐसा आदर्श समाज गुरु रविदास जी के अनुसार बेगमपुरा (जहां कोई गम नहीं) है। उसकी रूप-रेखा इस प्रकार दी गई :
बेगम पुरा सहर को नाउ।।
दूखु अंदोहु नहीं तिहि ठाउ।।
नां तसवीस खिराजु न मालु।।
खउफु न खता न तरसु जवालु।।1।।
अब मोहि खूब वतन गह पाई।।
ऊहां खैरि सदा मेरे भाई ।।1।। रहाउ।।
काइमु दाइमु सदा पातिसाही।।
दोम न सेम एक सो आही।।
आबादानु सदा मसहूर।।
ऊहां गनी बसहि मामूर।।2।।
तिउ तिउ सैल करहि जिउ भावै।।
महरम महल न को अटकावै।।
कहि रविदास खलास चमारा।।
जो हम सहरी सु मीतु हमारा।।3।। (पन्ना 345)


गुरु रविदास जी फरमान करते हैं कि जिस आत्मिक अवस्था वाले ‘शहर’ (माहौल, समाज) में मैं बसता हूं उसका नाम ‘बेगमपुरा’  है। वहां न कोई दुख है, न कोई चिंता और न ही कोई घबराहट है। वहां किसी को कोई पीड़ा नहीं है। वहां कोई जायदाद नहीं है और न ही कोई कर लगता है। वहां ऐसी सत्ता है जो सदा रहने वाली है। वहां कोई श्रेणी-भेद नहीं है। गुरु रविदास जी फरमान करते हैं कि ऐसी खुशनुमा आबो-हवा वाले ‘शहर’ में जो रहेंगे वही हमारे मित्र हैं। तात्पर्य यह है कि प्रभु-मिलाप वाली आत्मिक अवस्था में सदैव आनंद ही आनंद बना रहता है।


गुरु रविदास जी जीवन भर एक ऐसे आदर्श समाज की संरचना एवं संभाल में संलग्न रहे जहां घृणा, भेदभाव और वैमनस्य नहीं था, समता और एकता का ही बोलबाला था।