आसमां पे घटा घनघोर छाये ।
देखो सावन झूम कर के आये ।।
बूँदों की बजने लगी पायल भी,
मन होने लगा है कुछ पागल भी।
झूमते हैं मोर पंख फैलाये ।
कलियों के घूंघट हटने लगे हैं ,
वन उपवन फूल महकनेे लगे हैं।
भँवरा भी फिर गीत गुनगुनाये।
बागों में हैं झूलों की बहारें ,
मनवा पे पड़े प्रीत की फुहारें ।
फिर से कोई मेघ मल्हार गाये ।
सपने तमाम लिये चंचल अखियाँ,
दिल की बातें करें फिर तो सखियाँ।
आली कौन है वो जो तरसाये।
नैनो में तो कजरे लहकते हैं ,
बालों में भी गजरे महकते हैं ।
मेंहदी कोमल हथेली रचाये ।।
अब तो दरस दिखा जा सजन।
सावन की रिमझिम फुहार बन।
झूले पड़े हैं कदंब की डार पे,
भ्रमर सुनाते कोई गीत मिलन।
बाँसुरी की सुर लगे मनोहर,
लग जा गले मेरे पुष्पहार बन।
मोर-पपीहा भये ब्याकुल सब,
हुई राधा बाँवरी बिन किशन ।
फोड़ी गगरिया ग्वाल-बाल संग,
पनघट पे पँहुचे अति भोर मोहन।
लेखिका पुष्पा पाण्डेय