_प्राइवेट स्कूलों में पढ़ाने वाले शिक्षकों के लिए बढ़ी मुसीबत_
_सरकारी योजनाओं से वंचित हैं मध्यम वर्गीय शिक्षित समाज_
सलेमपुर,देवरिया। देश आज कोरोना संकट से गुजर रहा है लोगों के रोजगार व काम-काज उनसे दूर हो चुके हैं, उनके सामने आर्थिक संकट गहराता जा रहा है।देश व प्रदेश की सरकारें अपने नागरिकों के लिए विविध योजनाएं लाकर उनके मदद में कोई कोर कसर नही छोड़ रही, लेकिन समाज मे एक ऐसा भी वर्ग है जो इन सरकारी योजनाओं से कोसो दूर है और उनके सामने उत्पन्न हुआ आर्थिक संकट दिन पर दिन गहराता जा रहा है।
प्राइवेट स्कूलों में पढ़ाने वाले लोग जिनके परिवार का जीविकापार्जन एक मात्र विद्यालय से होने वाली आर्थिक उपार्जन व टीयूशॉन से होता है।लेकिन आज पिछले चार माह से कोरोना के चलते देश मे हुए लॉक डाउन के कारण अभी तक स्कूलों में ताले लटक रहे है।विद्यालय प्रबंधन द्वारा अपने शिक्षकों का कुछ आर्थिक सहयोग किया जाता रहा लेकिन सभी विद्यालयों ने ऐसा नही किया यह भी सत्य है।बहुत सारे विद्यालय अपने शिक्षकों का आर्थिक सहयोग करने से कतराते रहे हैं।ऐसे लोगों के सामने घोर आर्थिक संकट गहराता जा रहा है।
अभिभावक अपने पाल्य का शुल्क जमा करने को लेकर असमंजस की स्थिति में पड़े हैं कि जब विद्यालय में शिक्षण कार्य नही हुआ तो शुल्क किस बात का? विद्यालय प्रबंधन का कहना है नो वर्क नो पेमेन्ट फिर तो इस हालात में कम वेतन पर विद्यालय में शिक्षण कार्य करने वाले इन लोगों के लिए सरकार के तरफ से भी कोई आशाभरी किरण आती नही दिखती।
सरकार के तरफ से जनधन खाता में 500 रुपये महीने,मनरेगा मजदूरों को आर्थिक सहयोग,उज्ज्वला गैस कनेक्सन धारकों को निःशुल्क गैस सिलिंडर आदि दिया जा रहा।किसान सम्मान निधि के माध्यम से किसानों का भी आर्थिक सहयोग किया जा रहा।लेकिन प्राइवेट स्कूलों में पढ़ाने वाले लोग या कोचिंग पढ़ाने वाले लोग या फिर घर-घर जाकर टीयूशन पढ़ाने वाले लोगों के बारे में अभी तक सरकार आखिर उदासीन क्यों।
सरकारी विद्यालय बन्द लेकिन शिक्षकों व शिक्षणेत्तर कर्मचारियों का वेतन जारी,फिर इनके साथ सौतेला व्यवहार क्यों? सभी सरकारी व प्राइवेट स्कूल तथा कोचिंग संस्थान बंद पड़े है और सरकारी कर्मचारियों को वेतन और निजी विद्यालयों के कर्मचारियों के लिए कोई सुविधा नही आखिर ऐसा क्यों ?
सरकार इन लोगों के बारे में भी सोचे और इनके आर्थिक सहयोग के लिए कोई ठोस कदम उठाये जिससे इस वर्ग का भी भला हो सके।
*सांकृत्यायन रवीश पाण्डेय*